भाषायी शुद्धतावाद के समर्थकों को इस बात का गुमान भी न होगा कि हिन्दी में बेरोजगार शब्द का कोई प्रचलित विकल्प ही नहीं है। ऐसे अनेक शब्द हैं जो अरबी, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली, अंग्रेजी आदि भाषाओं से आकर हिन्दी में घुलमिल गए हैं और हम उनके साथ देशी बोलियों के घुले-मिले शब्दों जैसा ही बर्ताव करते हैं। कभी एहसास नहीं होता कि कुछ सौ साल पहले तक ये हमारे पुरखों के लिए अजनबी थे। साबुन के लिए हिन्दी में ढूंढे से कोई दूसरा शब्द नहीं मिलता। इसी तरह शर्त लगाने के लिए क्या हिन्दी के पास कोई आसान सी अभिव्यक्ति है? चाय पीने के लिए जिस पात्र का हम प्रयोग करते हैं उसके लिए फारसी मूल सेप्याला, प्याली ( फारसी में पियालः) जैसे शब्द हिन्दी में बना लिए गए हैं मगर क्या हिन्दी में इनका कोई आसान विकल्प नजर आता है? सर्वाधिक लोकप्रिय जो शब्द इस संदर्भ में याद आता है वह कप है जो अंग्रेजी का है। संस्कृत का चषक शब्द जरूर हमारे पास है मगर वह ग्रंथों में है, दिल, दिमाग और जबान पर उसका कोई स्पर्श अब बाकी नहीं रहा। बोलचाल में सिफारिश ही की जाती है, शुद्धतावादियों के अनुशंसा जैसे शब्द से कलम को तो कोई परहेज नहीं पर जबान को जरूर है। अपने दिल से पूछ कर देखिए। शुद्धतावाद दरअसल एक किस्म की कट्टरता है जिससे न समाज का कल्याण होना है, न भाषा का और न ही साहित्य का। भाषा का भला होता है तभी संस्कृति भी समृद्ध होती है।
'शब्दों का सफर ब्लॉग’ से साभार
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