Friday, October 22, 2010

देश विदेश के लोग हिंदी सीखकर भारत जैसे उभरते बाज़ार में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं

देश विदेश के लोग हिंदी सीखकर भारत जैसे उभरते बाज़ार में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं:  अखिलेश शुक्ल
वर्तमान में इंटरनेट आम आदमी की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होता जा रहा है।
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वीं शताब्दी के प्रारंभ में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी ज़ल्दी यह लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करेगा। आम उपयोक्ता प्रायः इ-मेल, गाने, वाल पेपर, आदि सर्च करता है। इसके साथ ही उसका परिचय ब्लागिंग से भी हो जाता है। ब्लागिंग की शुरुआत हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ है। अँगरेज़ी के ब्लॉग इस शताब्दी के प्रारंभ में इंटरनेट पर आ गए थे। जिन्हें अमरीकी इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं द्वारा बनाया गया था। हिंदी ब्लागिंग की शुरुआत हुए अभी लगभग 5 या 6 वर्ष ही हुए हैं। यूनिकोड़ की
सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग
आसान हो गई है। यह एक ऐसा तरीक़ा है जिसके माध्यम से अपनी बात बिना किसी
रूकावट या कांट-छांट के एक दूसरे तक पहुंचाई जा सकती है। वह भी लगभग
मुफ़्त में।

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आज ब्लॉग पर हिंदी में कई विषयों पर सामग्री उपलब्ध है। जिसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। बहुत से ब्लॉग हिंदी साहित्य से भी जुडे़ हुए हैं। वे लगातार हिंदी में साहित्यिक सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। ब्लॉग पर लगभग प्रत्येक विधा का साहित्य उपलब्ध है। लेकिन यहां कविता व कहानी के साथ साथ तत्कालीन साहित्यिक जानकारी के ब्लॉग ही अधिक हैं।

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आज भले ही हिंदी साहित्य ब्लॉग पर अपनी शैशवास्था में हो पर आने वाला समय निश्चित रूप से उसी का है। वर्तमान में हिंदी के साहित्यकारों की पहुंच भी इन ब्लॉगों पर लगभग 10 प्रतिशत के आसपास ही है। लेकिन इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की बढ़ती संख्या आश्वस्त करती है कि हिंदी का दायरा अब देश की सीमाएं लांघकर दुनिया भर में अपनी पैठ बना रहा है।

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सोशल नेटवर्किग से जुड़ी विभिन्न वेबसाइटें भी साहित्यकारों-लेखकों को एक दूसरे के क़रीब ला रही हैं। इनके माध्यम से भी हिंदी साहित्य से जुड़े सभी उपयोगकर्त्ता एक दूसरे  ब्लॉग पर भ्रमण करते हैं। जिससे उन्हें एक दूसरे के द्वारा किए गए लेखन के संबंध में जानकारी मिलती है। सोशल नेटवर्किग साइट साहित्यकारों रचनाकारों के सुख दुख बांटने का भी दायित्व निभा रही हैं।

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लेकिन अत्यंत दुख के साथ यह लिखना पड़ रहा है कि ब्लॉग पर उपलब्ध साहित्य
की सुधबुध लेने वाला कोई नहीं है। इस पर उपलब्ध साहित्य को हिंदी में कोई तवज्ज़ो भी नहीं दी जाती है। पत्र पत्रिकाओं में उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा इसे उपेक्षा भाव से ही देखा जाता है। इसे हल्क़ा फुलका, चलताऊ व दोयम दर्ज़े का मानकर इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। ब्लॉग के साहित्य लेखक को तो कोई साहित्यकार मानने को भी तैयार ही नहीं है। जबकि वह बिना किसी विवाद, गुट या विमर्श में पड़े लगातार सृजन कर रहा है। ब्लॉगर न तो प्रगतिशीलता का अंध भक्त है और न ही वह परंपरावादी है। उसे न तो बाज़ारवाद से कोई लेना देना है और न ही वह प्राचीनतम मान्यताओं से बंधकर लिख रहा है। वह तो केवल वह रच रहा है जिसे दुनिया भर में स्वीकार किया जाए। आज वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो कहीं भी किसी परंपरा विशेष का विरोध या समर्थन नहीं दिखाई देगा। विश्व में लगभग प्रत्येक स्थान पर उन्हीं विषयों को तरहीज दी जाती है जो आम आदमी के कल्याण के हों। फिर भले ही चाहे वे किसी परंपरा अथवा सिद्धांत से निकलकर सामने आए हों। परंपरा भंजक का यह कार्य दुनियाभर के ब्लॉगर्स सफलतापूर्वक कर रहे हैं। इस में हिंदी साहित्य के ब्लागर्स का योगदान कम नहीं है।

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आज ब्लॉग पर जितने भी कवि मौज़ूद है उन्हें मुश्किल से ही साहित्यिक पत्रिकाओं में स्थान मिलता है। साहित्यिक पत्रिकाओं की बात तो दूर किसी सामान्य समाचार पत्र पत्रिकाओं तक में भी इन्हें स्थान नसीब नहीं है। इसका कारण पत्रिकाओं द्वारा शायद यह धारणा बना लेना है कि ब्लॉग के कवि, कवि नहीं हैं। जबकि आज ब्लॉग पर गंभीर व आम आदमी के सरोकारों से जुड़ी हुई कविताएं प्रकाशित की जा रही हैं। इनमें मानव जीवन के प्रत्येक पहलू पर विचार किया जा रहा है। इन कविताओं पर ब्लॉग पाठकों की टिप्पणियां भी लगातार पढ़ने में आती हैं। लेकिन ब्लॉग-काव्य पर हिंदी के आलोचकों,
समीक्षकों का ध्यान पता नहीं कब जाएगा?

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ब्लॉग पर अन्य विधाओं में जितनी भी रचनाएं हैं भले ही वह कम हों पर उच्च कोटि की हैं। इन्हें किसी भी तरह से दोयम दर्ज़े की रचनाएं नहीं सिद्ध किया जा सकता। प्रिंट मीडिया के लेखक ब्लॉग पर प्रायः कम ही लेखन का कार्य करते हैं। वे शायद यह मानकर चलते हैं कि इन रचनाओं को कोई पढ़ेगा भी नहीं। लेकिन ब्लागवाणी, चिटठाजगत जैसे ब्लाग एग्रीगेटर्स हिंदी ब्लॉग को लोकप्रिय बना रहे हैं यह प्रसन्नता की बात है।

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वहीं अंग्रेज़ी  के एग्रीगेटर्स जैसे टेक्नोरेटी, ब्लॉगलाग, ब्लागर्स इंडिया आदि भी हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में पीछे नहीं हैं। गूगल द्वारा उपलब्ध कराई गई ब्लॉग बनाने की सुविधा से हर हिंदी प्रेमी अब भलीभांति परिचित हो गया है। अन्य वेबासाईटें भी यह सुविधा उपलब्ध कराकर हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में महती योगदान दे रही हैं। इसी का परिणाम है कि अब देश भर में कहीं हिंदी का विरोध दिखाई नहीं देता है।
बल्कि देश विदेश के लोग हिंदी सीखकर भारत जैसे उभरते बाज़ार में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं।

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ब्लॉग पर उपलब्ध हिंदी साहित्य की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता इसका निःशुल्क उपलब्ध होना है। प्रिंट मीडिया के विपरीत ब्लॉग की साहित्यिक रचनाएं लम्बे समय तक पाठकों की पहुंच में रहती हैं। हां यदि ब्लागर्स यदि स्वयं इन्हें  हटा दे तो और बात है।

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आज आवश्यकता इस बात की है कि ब्लॉग पर उपलब्ध साहित्य को भी गंभीर व विचार योग्य साहित्य माना जाए। आलोचक, समीक्षक इन विभिन्न ब्लॉग पर उपलब्ध साहित्य पर विचार कर अपनी महत्वपूर्ण राय दें। इस साहित्य पर उनके सटीक विश्लेषण से ब्लॉगर्स को भी लाभ होगा। वहीं हिंदी ब्लॉग लेखन के स्तर में अपेक्षित सुधार होगा। यह प्रत्येक हिंदी साहित्य के शुभचिंतक का दायित्व बनता है कि वह ब्लॉगर्स को मार्गदर्शन प्रदान करें। 
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अब हिंदी साहित्य से जुड़े ब्लॉग दुनिया भर में पढ़े जा रहे हैं। देश विदेश में हिंदी प्रेमी व रचनाकार इन्हें लिख रहे हैं। इन पर व्यक्त किए गए विचार केवल ब्लॉगर्स के विचार न होकर हिंदी की साहित्य की नवीन अवधारणा का प्रतीक बन रहा है। अतः इसलिए भी इनपर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। अब वह समय आ गया है जब गिैर हिदी भाषी भी हिंदी से जुड़ेंगे। हिंदी पर समूचे विश्व का ध्यान इन ब्लॉग के कारण भी हैं। इसलिए आलोचकों समीक्षकों का यह दायित्व बनता है कि वे इन पर समुचित ध्यान दें।

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आने वाले दस वर्ष के अंदर ब्लॉग हिंदी साहित्य के विकास का प्रतीक होगा। दुनिया की अन्य भाषाएं भी इस सर्वसुलभ माध्यम का इस्तेमाल अपनी भाषा व उसके साहित्य के विकास के लिए कर रही हैं।

तो फिर हिंदी क्यों पीछे रहे?
अखिलेश शुक्ल
संपादक, कथाचक्र
3, 
तिरूपति नगर, इटारसी, मध्यप्रदेश – 461111
मो.- 94244-87068

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