Tuesday, December 21, 2010

हिंदी में विदेशी शब्द अच्छे पर उनकी भरमार नहीं:वेदमित्र

हिंदी भाषा में अंग्रेजी के शब्दों का समावेश करने के बारे में भाषाशास्त्रियों में चर्चाएं चलती रहती हैं। हिंदी ही क्या, विभिन्न भाषाएं शब्दों के आदान-प्रदान से समृद्ध ही होती हैं। नए शब्द बहुधा एक
नई ताजगी अपने साथ लाते हैं, जिससे भाषा का संदर्भ व्यापक होता है। उदाहरण के लिए मॉनसून शब्द पूर्वी एशिया से भारत आया और ऐसा रम गया जैसे यहीं का मूलवासी हो। दक्षिण भारत से 'जिंजर' सारी दुनिया में चला गया और विडंबना यह है कि अनेक लोग उसे पश्चिम की देन मानते हैं। इसी प्रकार
उत्तर भारत के योग शब्द से स्वास्थ्य लाभ करने वाले सारे संसार में फैले हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में इंडोनेशिया आदि से 'सूनामी' की लहर ऐसी उठी जिसकी शक्ति सारे संसार ने अनुभव की। 'रेडियो' कहीं भी पैदा हुआ, वह सार्वभौमिक बन गया। अंग्रेजी का 'बिगुल' पूरे दक्षिण एशिया में बजता है। केवल शक्तिशाली शब्द ही दूसरी भाषाओं में नहीं जाते। अनेक साधारण-से दिखने वाले शब्द भी महाद्वीपों को पार कर जाते हैं। जब लोग विदेश से लौटते हैं, तो वे अपने साथ वहां दैनिक व्यवहार में उपयोग होने वाले कुछ शब्दों को भी अपने साथ बांध लाते हैं। अंग्रेज जब इंग्लैंड वापस गए, तो भारत के 'धोबी' और 'आया' को भी साथ ले गए। इसी प्रकार पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका से लौटे भारतीयों के साथ 'किस्सू' (चाकू), 'मचुंगा' (संतरा) और 'फगिया' (झाड़ू) भी चली आई।
दूसरी भाषा के शब्द देशी हों या विदेशी, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। अंतर  पड़ता है उनकी मात्रा से। दाल में नमक की तरह दूसरी भाषा के शब्द उसे स्वादिष्ट बनाते हैं, लेकिन उनकी बहुतायत उसे गले से नीचे नहीं उतरने देती। जब हिंदी के कुछ हितैषी अपनी भाषा में अंग्रेजी की बढ़ती घुसपैठ का विरोध करते हैं, तो अंग्रेजीवादी अल्पसंख्यक खीज उठते हैं। वे अपने विरोधियों पर आरोप लगाते हैं कि वे लोग हिंदी को सभी अच्छी धाराओं से काटकर उसे पोखर बनाना चाहते हैं। परंतु कोई भी स्वाभिमानी जल प्रबंधक एक
स्वच्छ नदी में किसी भी छोटी-मोटी जलधारा को प्रवेश देने की अनुमति देने से पूर्व यह जान लेना चाहेगा कि वह धारा कूड़े कचरे से मुक्त हो। अंग्रेजी के कुछ समर्थक हिंदी पर अनम्यता और दूसरी भाषाओं के साथ मिलकर काम न करने का आरोप लगाते हैं। लेकिन रेलगाड़ी, बमबारी, डॉक्टरी, पुलिसकर्मी और रेडियोधर्मी विकिरण जैसे अनेक शब्द हमने बनाए हैं। उनका प्रयोग करने में किसी भी हिंदीभाषी को आपत्ति नहीं। सौभाग्यवश मैं उस  पीढ़ी का व्यक्ति हूं जिसने गणित, भूगोल, भौतिकी और रसायन शास्त्र आदि विषय हिंदी में पढ़े। लघुतम, महत्तम, वर्ग, वर्गमूल, चक्रवृद्धि ब्याज और अनुपात जैसे शब्दों से मैंने अंकगणित सीखा। उच्च गणित में समीकरण, ज्या, कोज्या, बल, शक्ति और बलों के त्रिभुजों का बोलबाला रहा। भूगोल पढ़ते समय उष्णकटिबंध, जलवायु, भूमध्यरेखा, ध्रुव और पठार जैसे शब्द सहज भाव से मेरे शब्द- भंडार का अंग बन गए। विज्ञान में द्रव्यमान, भार, गुरुत्वाकर्षण, व्युत्क्रमानुपात, चुंबकीय क्षेत्र, मिश्रण, यौगिक और रासायनिक क्रिया आदि शब्दों ने मुझे कभी भयभीत नहीं किया। और न ही किसी को चिकित्सक या लेखाकार घोषित करते हुए मेरे मन में किसी प्रकार का हीनभाव आया। स्वयं को सिविल अभियंता (अंग्रेजी के साथ मिलाकर बनाया गया  शब्द) कहने में मैं आज तक गर्व अनुभव करता हूं। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिलीशरण गुप्त, देवराज दिनेश, रामधारी सिंह दिनकर और गोपालदास नीरज आदि को अपनी  भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए अंग्रेजी की शरण में जाने की आवश्यकता कभी नहीं हुई। महादेवी वर्मा बिना अंग्रेजी की सहायता के तारक मंडलों की यात्राएं करती रहीं, हरिवंशराय बच्चन ने अंग्रेजी की सरिता में गोते खूब लगाए, अपने पाठकों को उसके अनेक रत्न भी निकालकर सौंपे, परंतु उस भाषा को अपने मूल लेखन में फटकने तक नहीं दिया। आचार्य चतुरसेन शास्त्री,
वृंदावनलाल वर्मा और प्रेमचंद अपनी भाषा से करोड़ों पाठकों के पास पहुंचे। बिना किसी मीठी लपेट के मैं कहना चाहूंगा कि यह सब अंग्रेजी के पक्षधरों के गुप्त षड्‌यंत्र का परिणाम है। जिस भाषा को अस्थायी रूप से सह-राष्ट्रभाषा की मान्यता दी गई थी, उसके प्रभावशाली अनुयायी एक ओर जय हिंदी का नारा लगाते रहे और दूसरी ओर हिंदी की जड़ें काटने में लगे रहे। उन्होंने पहले उच्च शिक्षा और फिर माध्यमिक शिक्षा, हिंदी के बदले अंग्रेजी में दिए जाने में भरपूर शक्ति लगा दी। यदि हिंदी किसी प्रकार उनके चंगुल से बच भी गई, तो तमाम अंग्रेजी तकनीकी शब्द उसमें ठूंस दिए गए, यह बहाना बनाकर कि हिंदी के शब्द संस्कृतनिष्ठ और जटिल हैं। भौतिकी कठिन है, फिजिक्स सरल है। विकल्प आंखों के आगे अंधेरा ला देता है, अएल्टरनेटिव तो भारत का जन्मजात शिशु भी समझता है। धीरे-धीरे चलनेवाली इस मीठी छुरी से कटी भारत की भोली जनता पर इन पंद्रह-बीस वर्षों में एक ऐसा मुखर अल्पमत छा गया है, जो सड़क को रोड, बाएं-दाएं को लैफ्ट-राइट, परिवार को फैमिली, चाचा-मामा को अंकल, रंग को कलर, कमीज को शर्ट, तश्तरी को
प्लेट, डाकघर को पोस्ट अएफिस और संगीत को म्यूजिक आदि शब्दों से ही पहचानता है। उनके सामने हिंदी के साधारण से साधारण शब्द बोलिए, तो वे टिप्पणी करते हैं कि आप बहुत शुद्ध और क्लिष्ट हिंदी बोलते हैं।
वे कहते हैं- एक्सक्यूज मी, अभी आप पेशंट को नहीं देख सकते। या, मैं कनॉट प्लेस में ही शॉपिंग करता हूं। या, मेरा हस्बेंड बिजनेसमैन है। यह भाषाई दिवालियापन नहीं तो और क्या है। विदेशी ग्राहकों से अंग्रेजी में बात करने की क्षमता वाले लोगों की सेना तैयार करने की धुन में हम भारत के करोड़ों युवक-युवतियों की शैक्षणिक आवश्यकताओं को अनदेखा कर रहे हैं। उनकी क्षमताओं का पूर्णतः विकास करने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें मातृभाषा में शिक्षा दी जाए। हिंदी केवल चलचित्र बनाने वालों की भाषा नहीं है। न
ही यह केवल उनके लिए है जो अपने कुछ मित्रों के साथ बैठकर वाह-वाह करने से संतुष्ट हो जाते हों। यह उन सभी के लिए होनी चाहिए जिनमें अपना जीवन विज्ञान, न्याय, शिक्षा, शोध और विकास के क्षेत्र में लगाने की क्षमता हो।

साभारः नवभारत टाइम्स

2 comments:

  1. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए आपका आभार. आपका ब्लॉग दिनोदिन आप अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    danke ki chot par

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  2. One may adopt English words in Hindi but write them in correct pronunciations so it won't ruin readers' or English learners' English.

    Hindi media uses more than forty percent of English words and some of them are not written in correctly in scientific Devanagari script.

    These two newly added sounds (अॅ/ऍ, ऑ) may replace lots of nasal sounds if taught properly.

    bank/बैंक >>बॅन्क
    hospital/अस्पताल >>> हॉस्पिटल हास्पिटल
    UK ​ /ˈhɒs.pɪ.təl/ US ​ /ˈhɑː.spɪ.t̬əl/

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