Saturday, October 9, 2010

हिंदी को बिगाड़ रहे हैं हिंदी अखबार

मुंबई विवि के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा : नवभारत टाइम्स के
एनबीटी बनने पर चिंता : मुंबई : युवा पीढी के नाम पर कुछ अखबार हिंदी को
हिंगलिश बनाने पर तुले हुए हैं. मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की
तरफ से आयोजित परिचर्चा में बुद्धिजीवियों की यह चिंता उभर कर सामने आई.
नवभारत टाइम्स (मुंबई) के पूर्व संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि जब घर
का गुसलखाना - बाथरुम, रसोई घर- किचन बन जाए और हिंदी के अखबार संसद को
पार्लियामेंट, प्रधानमंत्री को पीएम लिखने लगे, नवभारत टाइम्स एनबीटी बन
जाए तो हिंदी के लिए खतरे की घंटी जरूर सुनाई देती है. उन्होंने कहा कि
हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषा बनाने से पहले जरूरी यह है
कि सही मायने में हिंदी को पहले इस देश की राष्ट्रभाषा बनाया जाए.
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा 'हिन्दी
का वर्तमान स्वरूप : दिशा और दशा' में बोलते हुए सचदेव ने कहा कि इधर
हिंदी की अलग-अलग बोलियों को लेकर लोगों का आग्रह बढ़ा है. पर अच्छा यह
होगा कि हम हिंदी की बात करें, क्योंकि इसका विशाल दायरा है. सचदेव ने
हिंदी अखबारों में अंग्रेजी शब्दों के बढ़ते इस्तेमाल पर ऐतराज जताया.
परिचर्चा के उद्घाटनकर्ता महाराज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी
अध्यक्ष नंदकिशोर नौटियाल ने कहा कि हिंदी की ताकत को अमेरिका ने भी
पहचान लिया है. इसलिए वहां दर्जनों विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा
रही है. उन्होंने कहा कि एक शोध से पता चला है कि हिंदी दुनिया में सबसे
ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. जबकि अब तक इसे दूसरे नंबर पर माना जाता
है. वरिष्ठ लेखक डॉ. नंदलाल पाठक ने कहा कि हिंदी को लेकर परेशान होने की
जरूरत नहीं है. हिंदी खुद ब खुद फल-फूल रही है.
परिचर्चा में भाग लेते हुए 'हमारा महानगर' के स्थानीय संपादक राघवेंद्र
द्विवेदी ने कहा कि हिन्दी को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. हिन्दी
का भविष्य उज्ज्वल है और यह तेजी से आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि अब
दक्षिण के लोगों को भी हिंदी से परहेज नहीं रहा. सब लोग हिंदी को अपना
रहे हैं. हिंदी के लिए अंग्रेजी के विरोध की जरूरत नहीं है. 'नवभारत' के
वरिष्ठ संवाददाता विजय सिंह 'कौशिक' ने कहा कि विभिन्न भाषा व
संस्कृतियों वाले देश में राष्ट्र को एक सम्पर्क भाषा की जरूरत है और
हिंदी में ही वह सम्पर्क भाषा बनने का दमखम है. उन्होंने कहा कि हिन्दी
को लेकर सरकार के पास कोई नीति नहीं है. सरकार को इसे रोजगार की भाषा
बनाने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए. हिंदी को शुद्धतावादियों से बचाने की
जरूरत पर बल देते हुए सिंह ने कहा कि इसका मतलब यह भी नहीं है कि हिंदी
में अंग्रेजी के शब्द जबरन ठूंसे जाएं.
हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि हिंदी भी
रोजगार देने वाली भाषा है और हिंदी दुनियाभर में अपनी पहचान बना रही है.
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी, स्पेनिश, चीनी, अरबी, फ्रेंज व रूसी संयुक्त
राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषा है. इनमें अरबी व स्पेनिश भाषा बोलने वालों
की संख्या काफी कम है जबकि दुनियाभर में 1 अरब 11 लोगों की भाषा है
हिंदी. इस हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषा होने का पूरा
अधिकार है.
मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय, विलेपार्ले के प्राध्यापक रविद्र
कात्यायन ने कहा कि मैं यह बात नहीं मानता कि हिंदी रोजगार नहीं दिला
सकती. यदि आपको सौ प्रतिशत हिंदी और ५० प्रतिशत अंग्रेजी का ज्ञान हो तो
काम की कोई कमी नहीं है. वरिष्ठ साहित्यकार सुधा अरोड़ा ने हिंदी अखबारों
में अग्रेजी के अत्यधिक प्रयोग पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि जब
प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को केवल अंग्रेजी अक्षर का ज्ञान दिया जाएगा
तो वे बाद में हिंदी को कैसे अपना सकेंगे. लातूर के डॉ. मानधने ने कहा कि
बाजार हिंदी से चलती है पर बाजार के लोग अंग्रेजी बोलने में ही अपनी शान
समझते है. इस मौके पर मुंबई विवि के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. विष्णु
सरवदे, मुंबई विवि के उपकुलसचिव आशुतोष राठोड़, नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ
कॉपी संपादक दुर्गेश सिंह, हमारा महानगर के कार्यालय संवाददाता रामदिनेश
यादव आदि मौजूद थे.


मुंबई से विजय सिंह 'कौशिक' की रिपोर्ट
भड़ास4मीडिया - आयोजन    

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