Wednesday, September 22, 2010

अखबार समाज का आईना है, इसकी भाषा भी समाज की है - श्रवण गर्ग

 देश के दस प्रमुख अखबारों में नौ भाषा के अखबार टॉप टेन लिस्ट में शामिल हैं। जिसमें हिंदी के पांच अखबार और अंग्रजी का सिर्फ एक अखबार है वो भी 8वें नंबर पर, जब हिंदी अखबारों की रीडरशिप इतनी ज्यादा बढ रही है तो हिंदी सिर्फ कवियों की भाषा कैसे हो सकती है। जबकि रीडरशिप सर्वे के अनुसार हिंदी अखबारों की रीडरशिप 50 करोड़ से भी ज्यादा है।

अखबार हिंगलिश भाषा का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं कर रहे हैं, बल्कि अखबार उस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जिस भाषा का इस्तेमाल आज का युवा बिजनेस में कर रहा है, पढ़ाई के दौरान करता है और जिस भाषा को युवा एसएमएस में इस्तेमाल करते है. जब अखबार आम इंसान का आइना होता है तो यह आम लोगों की भाषा से अलग कैसे हो सकता है।
परिवर्तन से किसी को कभी कोई खतरा नहीं होता है, बल्कि खतरा उन लोगों को या उन चीजो को होता है जो परिवर्तन की हिस्सा नहीं बन पाते हैं। हां, अगर हम यह कहे कि क्लिस्ट भाषा या कठिन भाषा के अस्तित्व को खतरा है तो यह कहीं न कही सच है। जब तक चीजें समय के साथ नहीं बदलेंगी तब तक उनको खतरा है। दुनिया भर में बदलाब की बयार चल रही है तो अगर यह परिवर्तन भारत में हो रहा है तो क्या गलत है।
  


लेखक श्रवण गर्ग ,दैनिक भास्कर  के समूह संपादक हैं 

साभार - 

No comments:

Post a Comment