Wednesday, September 22, 2010

हिंदी को और ज्यादा आसान बनाने की जरूरत है - सुधीर चौधरी

मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि हिंदी केवल कवियों और विचारकों की भाषा बनकर रह गई है। इसी वजह से आज यह नौबत आई है कि आज हम हिंदी दिवस मना रहे हैं। 365 दिनों में से एक दिन हम हिंदी के बारे में बात करते हैं। फिर लोग कहते हैं कि हिंदी हमारी मातृभाषा है। मेरा कहना है कि हिंदी की इस दशा के जिम्मेदार हिंदी के ठेकेदार ही हैं। उन्होंने हिंदी को इतना मुश्किल बना दिया है कि वो हिंदी आम बोलचाल की भाषा हो ही नहीं सकती। हिंदी को आम बोलचाल की भाषा होना जरूरी है। इसे और ज्यादा आसान करना बहुत जरूरी है। हिंदी कवियों और सरकार ने हिंदी भाषा को कल्ष्टि भाषा बना दिया है। यह केवल ज्ञानी और विद्वानों की भाषा बनकर रह गई है। लेकिन इसे आज की पीढ़ी की भाषा बनाने के लिए इसे कुछ ज्यादा आसान बनाने की जरूरत है। हिंदी को वक्त के साथ बदलने की जरूरत है। हिंदी भाषा को बदलना ही होगा। मीडिया के द्वारा जो हिंदी भाषा के शब्दों का प्रयोग करके हिंदी को और ज्यादा आसान बनाया जा रहा है। ऐसे शब्दों का प्रयोग करके मीडिया हिंदी का सरलिकरण कर रही है। मैं इन शब्दों के प्रयोग से पूरे तरीक से सहमत हूं। लोग जिस तरह हिंदी को स्वीकार करें उसी तरह से पेश करना चाहिए। लोग जिस तरह से सुनना बोलना चाहे उसी तरह से हिंदी को पेश किया जाना चाहिए, इससे हिंदी का प्रचार हो रहा है और हिंदी आसान हो रही है। हिंदी भाषा को खुलना होगा। इसे मार्केट की भाषा बनना होगा। जब तक यह भाषा नहीं खुनेगी तब तक इसे परेशानी होती रहेगी। आज के समय में हिंदी बोलने और सुनने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन जो प्रोफेसर और कवियों वाली हिंदी है उसको बोलने और सुनने वाले कम हुए हैं। हिंदी में जो बदलाव हुए हैं वो मुझे स्वीकार हैं क्योंकि बदलाव प्रकृति का नियम है। जो चीजें पहले थीं वो अब वैसी नहीं रही हैं। जो कपड़े आज से दस साल पहले पहनते थे वो आज नहीं पहनते, 1970 में जो फिल्में बनती थी वो 1990 में नहीं बनी और 1990 में बनने वाली फिल्में आज नहीं बन रही हैं। अंग्रेजी में बदलाव हुआ है। हर चीज में बदलाव हुआ हैं खेल में बदलाव हुआ हैं। हिंदी को भी बदलना होगा। और हिंदी भाषा में रोजना जो नए प्रयोग किए जा रहे हैं उनका हिंदी भाषा पर असर बहुत अच्छा पड़ेगा। इससे हिंदी की पहुंच बहुत सारे लोगों तक हो सकती है। चाहे उसे अपनी दिशा बदलनी पड़े। मेरा मानना है कि ऐसे प्रयोगों से हिंदी मजबूत होगी। इसका महत्व बढ़ेगा। सरकार को चाहिए कि हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम की भाषा से हटाकर आम बोलचाल की भाषा बनाने का प्रयास करे। इसे एकेडमिक भाषा से आम बोलचाल की भाषा बनाना होगा। जनता जैसा सुनना चाहती है जैसा बोलना चाहती है उसे करने दें। आज देखा जाए तो सरकार की नीतिओं में भी हिंदी एकेडमिक भाषा बनकर रह गई है।


सुधीर चौधरी, सीईओ और एडिटर-इन-चीफ, लाइव इंडिया और मी-मराठी




साभार - 


1 comment:

  1. I am more interested in language simplification tools.

    In Internet age,Why can't we challenge to हिंदी वर्तनी का मानकीकरण?

    If written words can be understood along with speech and have no other meanings then why not write as you pronounce Hindi in simple spellings to make it teachable,transliteratable, learn-able and spell checker free to a greater extent.?

    Your article In proposed Global Hindi:

    Do I miss any sounds needed in speech?
    If some one reads this article to you loudly would you clearly understand?
    If taught properly,would students make mistakes in dictation?


    हीन्दी को और ज्यादा आसान बनाने की जरुरत है - सुधीर चौधरी
    मै पुरी तरह से सहमत हुन् की हीन्दी केवल कवीयॉ और वीचारकॉ की भाषा बनकर रह गई है. इसी वजह से आज यह नौबत आई है की आज हम हीन्दी दीवस मना रहे है. 365 दीनॉ मॅ से एक दीन हम हीन्दी के बारे मॅ बात करते है. फीर लोग कहते है की हीन्दी हमारी मातृभाषा है. मेरा कहना है की हीन्दी की इस दशा के जीम्मेदार हीन्दी के ठेकेदार ही है. उन्हॉने हीन्दी को इतना मुश्कील बना दीया है की वो हीन्दी आम बोलचाल की भाषा हो ही नही सकती. हीन्दी को आम बोलचाल की भाषा होना जरुरी है. इसे और ज्यादा आसान करना बहुत जरुरी है. हीन्दी कवीयॉ और सरकार ने हीन्दी भाषा को कल्ष्टी भाषा बना दीया है. यह केवल ज्ञानी और वीद्वानॉ की भाषा बनकर रह गई है. लेकीन इसे आज की पीढी की भाषा बनाने के लीए इसे कुछ ज्यादा आसान बनाने की जरुरत है. हीन्दी को वक्त के साथ बदलने की जरुरत है. हीन्दी भाषा को बदलना ही होगा. मीडीया के द्वारा जो हीन्दी भाषा के शब्दॉ का प्रयोग करके हीन्दी को और ज्यादा आसान बनाया जा रहा है. ऐसे शब्दॉ का प्रयोग करके मीडीया हीन्दी का सरलीकरण कर रही है. मै इन शब्दॉ के प्रयोग से पुरे तरीक से सहमत हुन्. लोग जीस तरह हीन्दी को स्वीकार करॅउसी तरह से पेश करना चाहीए. लोग जीस तरह से सुनना बोलना चाहे उसी तरह से हीन्दी को पेश कीया जाना चाहीए, इससे हीन्दी का प्रचार हो रहा है और हीन्दी आसान हो रही है. हीन्दी भाषा को खुलना होगा. इसे मार्केट की भाषा बनना होगा. जब तक यह भाषा नही खुनेगी तब तक इसे परेशानी होती रहेगी. आज के समय मॅ हीन्दी बोलने और सुनने वालॉ की सन्ख्या दीनॉ दीन बढती जा रही है. लेकीन जो प्रोफेसर और कवीयॉ वाली हीन्दी है उसको बोलने और सुनने वाले कम हुए है. हीन्दी मॅ जो बदलाव हुए है वो मुझे स्वीकार है क्यॉकी बदलाव प्रकृती का नीयम है. जो चीजॅन् पहले थी वो अब वैसी नही रही है. जो कपडे आज से दस साल पहले पहनते थे वो आज नही पहनते, 1970 मॅ जो फील्मॅ बनती थी वो 1990 मॅ नही बनी और 1990 मॅ बनने वाली फील्मॅ आज नही बन रही है. अन्ग्रेजी मॅ बदलाव हुआ है. हर चीज मॅ बदलाव हुआ है खेल मॅ बदलाव हुआ है. हीन्दी को भी बदलना होगा. और हीन्दी भाषा मॅ रोजना जो नए प्रयोग कीए जा रहे है उनका हीन्दी भाषा पर असर बहुत अच्छा पडेगा. इससे हीन्दी की पहुन्च बहुत सारे लोगॉ तक हो सकती है. चाहे उसे अपनी दीशा बदलनी पडे. मेरा मानना है की ऐसे प्रयोगॉ से हीन्दी मजबुत होगी. इसका महत्व बढेगा. सरकार को चाहीए की हीन्दी भाषा को पाठ्यक्रम की भाषा से हटाकर आम बोलचाल की भाषा बनाने का प्रयास करे. इसे एकेडमीक भाषा से आम बोलचाल की भाषा बनाना होगा. जनता जैसा सुनना चाहती है जैसा बोलना चाहती है उसे करने दॅ. आज देखा जाए तो सरकार की नीतीऑ मॅ भी हीन्दी एकेडमीक भाषा बनकर रह गई है.

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