Monday, September 13, 2010



बोलियों को बचाएं - हिन्‍दी को बचाएं


चूंकि हिन्‍दी में एक बडा खरीददार वर्ग है, इसलिए भूमंडलीकरण और बाजारवाद
के इस जमाने में हिन्‍दी को कोई खतरा नहीं है. असली खतरा हमारी जनपदीय
भाषाओं और बोलियों को है. यह खतरा अंग्रेजी से तो है ही, स्‍वयं हिन्‍दी
से भी है. हम अपनी बोलियों को छोडकर अंग्रेजी नहीं, हिन्‍दी अपना रहे है.
इस तरह धीरे-धीरे अपनी बोली के शब्‍द-भंडार को भूलते चले जा रहे हैं.
10-20 सालों में इन जनपदीय भाषाओं को बोलने वाले बहुत कम लोग रह जायेंगे.
इनके साथ हमारी मौलिक ज्ञान पंरपरा और स्‍मृति भी खत्‍म हो जाएगी. आज
जरूरत है हमारी मातृभाषाओं को बचाने की. हिन्‍दी को बाजार का आश्रय मिल
चुका है, इसलिए उसके सामने उतना बडा खतरा नहीं. अगर हम अपनी मातृभाषाओं,
जो कि छोटी-छोटी बोलियां हैं, को बचाते हैं तो हिन्‍दी अपने आप बची
रहेगी, क्‍योंकि हिन्‍दी उन्‍हीं बोलियों से स्‍वयं को समृद्ध करती है.
आप क्‍या सोचते हैं? अपनी राय से अवगत कराएं, यही 'हिन्‍दी दिवस' पर
सच्‍ची शुभकामना होगी.


Ganga Sahay Meena
Assistant Professor in Hindi
Centre of Indian Languages
Jawaharlal Nehru University

lokrajniti.blogspot.com


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